अरमानों की खाक
मैंने देखा था आज किसी के अरमानों को खाक होते हुए मैंने देखा था आज किसी के सपनों को धूं धूं कर जलते हुए । मैंने देखा था आज किसी के सुनहरे भविष्य को पल भर में राख होते हुए एक शख़्स बदहवास सा जले हुए मलबे के ढेर से ढूंढ रहा था वो पैसे कमाई हुई वो जमा पूंजी जो जीवन की भट्टी में अरमानों का किरासिन डाल कर पकाई थी कभी जिसका हिसाब उसकी पत्नी रोज़ाना उँगलियों पर करती थी और पूछती थी अब कितने जमा हो गए जो उसने और उसकी पत्नी ने पेट काटकर जमा किये थे अपनी बिटिया की शादी के लिए आज ही बैंक से निकाले थे आज मेरे मुहल्ले के बाजार में आग लगी थी सब व्यस्त थे अपने मोबाइल से तस्वीरें खीचने में मगर मेरा ध्यान उस शख्स पर ही था अभी भी जो जलते अंगारों की परवाह किये बगैर खंगाल रहा था जला मलबा इस उम्मीद के साथ की पैसे शायद साबुत हों । मैं अपने बहते आंसू रोक नहीं पाया और आस पास के लोगों से छुपाने के लिए ये कहता रहा की धुंए से जल रही है । मनोज नायाब