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Showing posts from June, 2022

खुरचन

रिश्तों के खाली भगोने में बाकी है अब भी थोड़ी सी यादों की जिद्दी सी खुरचन उतार फेंका था तुमने तो हम ओढ़े बैठे हैं अब भी  उम्मीदों की मैली सी उतरन चाहे जितना वक्त लगे पर हम जोड़ेंगे फिर से  रिश्तों की उधड़ी सी कतरन हम  समझ बैठे थे दूरी जिसे अस्ल में थी वो तो नायाब  नज़रों की भोली सी अनबन   तुम अब भी न लौटे तो हम रिश्तों के अस्थिकलश को  कर देंगे गंगा में तरपन । मनोज नायाब             

बिटिया

कब आ रही हो बिटिया ससुराल से तुम्हारा बचपन याद करता हूँ तो  भीग जाती है पलकें बिटिया कैसे पहली बार जब तुम्हारे  कान छिदवाए तो हम मुस्कुरा रहे थे तुम रोती हुई भी कितनी मासूम लग रही थी । पहली बार तूने जब स्कूल यूनिफार्म पहनी थी तो हमने काला टिका लगाया था  और मोबाइल से तस्वीरे उतारी  जब पहली बार तुम चलने लगी तो हम तालियां बजा कर नाचने लगे पहली बार स्कूल के annual function में stage पर तुमको परफॉर्म करते देखा जब पहली बार स्कूल की दौड़ में  मेडल लाई थी और बोली पापा  आंखें बंद करो surprize है तो हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो गया था बिटिया और वो जायका अब भी मेरी जुबान पर है जो तुमने पहली बार मेरे लिए  चाय बनाई थी और हँसते हुए मैंने तुम्हारी मम्मी से कहा कि अब तुम्हारी जरूरत नहीं  मेरी बिटिया बड़ी हो गई है  मार्क्स खराब आने पर  कैसे मम्मी को पटाती की पापा को मत बताना  तुम ससुराल क्या गई घर काटने को दौड़ता है  बिटिया । कुछ दिन के लिए आ सकती हो क्या तुम कहो तो जवाई बाबू से  बात कर लेता हूँ । तेरी मां भी कल तुझे याद करते हुए रो पड़ी । जाने कब आंखें बंद  हो जाए हमारी   आ जा न एक बार लाडो । मनोज नायाब--  

बाढ़

हे ईश्वर ।  काश के तुमने   दिए होते जल को नेत्र  तो देख पाता   उसके तीव्र वेग में  समाए हुए खेत,  गहने गिरवी रख कर  बनाया गया   कच्चा मकान,  पसीने से सिंचित खड़ी फसल  एक जर्जर सा स्कूल बूढ़े बाबा की चाय की टपरी कच्ची बस्तियां शहीद की विधवा  की सिलाई की दुकान बूढ़ी दादी का  सब्जी का ठेला 24 गांव के लिए  एक मात्र अस्पताल मूक मवेशी अब्दुल मोची  राम शरण नाई की  तख्तियां जोड़ जाड़ कर बनाई हुई दुकान  काश जल को   दिए होते नेत्र  तो शायद रास्ता   बदल लेता वो  और लोग भूखों मरने   से बच जाते

हे ईश्वर

हे ईश्वर ।  काश के तुमने   दिए होते जल को नेत्र  तो देख पाता कि   उसके तीव्र वेग में  समा हुए खेत,  गहने गिरवी रख कर  बनाया गया   कच्चा मकान,  पसीने से सिंचित खड़ी फसल  एक जर्जर सा स्कूल बूढ़े बाबा की चाय की टपरी कच्ची बस्तियां शहीद की विधवा  की सिलाई की दुकान बूढ़ी दादी का  सब्जी का ठेला 24 गांव के लिए  एक मात्र अस्पताल मूक मवेशी अब्दुल मोची  राम शरण नाई की  तख्तियां जोड़ जाड़ कर बनाई हुई दुकान  काश जल को   दिए होते नेत्र  तो शायद रास्ता   बदल लेता वो  और लोग भूखों मरने   से बच जाते । मनोज नायाब