मेरा सजन नुक्कड़ का हलवाई
मेरा सजन
उस नुक्कड़ के हलवाई की तरह
जिसने मुलाकात के लम्हों की
सारी सामग्री इकट्ठा की
और उनको लोइयां बनाकर
इश्क की मंद मंद आंच पर
दिल की कढ़ाई में पकाया
और वादों और खवाबों की चासनी में
डुबोया
बस फिर क्या था एक लज़ीज़ पकवान
तैयार था
जिसका नाम होठों की तख्ती पर
मुहब्बत लिखा और टांग दिया
इश्क की दुकान पर
फिर
शाम तक बेच डाला
अगले दिन फिर कोई नए लम्हों की
नई सामग्री
नए ख्वाबों की चासनी
नया दिल
वह रे सजन
तेरी इश्क की दूकान
तो खूब चलती है आजकल ।
मनोज नायाब
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