Saturday, May 4, 2024

जब भी कोई बुरी नज़र मेरे घर पर आती थी

जब भी कोई बुरी नज़र मेरे घर पर आती थी
यहां एक मां रहती है ये देखकर लौट जाती थी

आज कर्कश अलार्म से उठना होता है रोज़ मुझे
मगर बचपन में किसी राजकुमार से कम न थे 
मां जब सवेरे माथा चूमकर उठाती थी ।

रोजाना कन्हैया की कहानियां सुनाकर मुझे सुलाती थी
सोने के बाद भी माँ मेरा माथा चूमकर ही जाती थीं ।


आज  inxiety के कारण नींद की गोलियां खाता हूं तब भी नहीं सो पाता हूँ ।
ग़ज़ब की डॉक्टर थी मेरी माँ बस थपकियाँ दे कर मिनटों में सुलाती थी 


अब तो जो खाते है सोशल मीडिया पर रोजाना दिखाते हैं
एक वो वक्त था जो किसी की नज़र न लगे 
इसलिए मुझे मां मेरी दूध भी आँचल ढककर पिलाती थी

घी तेल के कनस्तर भरे पड़े हैं मगर खा नहीं सकते
एक वो दौर था जब सबसे नज़रें बचाकर मेरी माँ
सबसे ज्यादा मेरी रोटियों पर घी लगाती थी ।

उस वक्त पिज़्ज़ा और बर्गर तो नहीं थे मगर माँ
सर्दियों में गोंद के मोटे मोटे लड्डू बनाती थी

माँ कम पढ़ी लिखी थी उसको गणित नहीं आती थी
4 रोटी खिलाकर मां मेरी 3 गिनवाती थी

अब बीमार होता हूँ तो गर्म पानी भी नहीं मिलता 
पहले जुखाम भी हो जाता तो माँ मेरी तुलसी का
काढा बनाती थी ।

जब पिताजी पीटने को दौड़ते थे तो 
मां ही मुझे बचाती थी ।

40 के पार हो गया फिर भी मां कहती है 
हाल तो टाबर है । अभी तू बच्चा है 
यही कहकर दुनिया की तोहमत से बचाती थी


मां ने कभी कोई जॉब नहीं कि मगर फिर 
भी जाने कहाँ से पैसे लाती थी 
मुश्किल समय में बाबूजी के हाथ में बिन मांगे
पैसे थमाती थी ।

राखी तीज और पीहर से जो थोड़ी आमदनी जुटा लेती थी
पर मां उस को भी हम बच्चों की परवरिश में लुटाती थी

जीवन की बगिया का मां बाप से बड़ा कोई माली नहीं होता
जाने कितनी भी तंगी हो मां का खजाना कभी खाली नहीं होता ।

कोई कविता मां बाबूजी के त्याग को शब्दों में बांध नहीं सकती है ।

कोई बाधा इस पावन नदी के प्रवाह को पत्थरों से सांध नहीं सकती है ।

कहाँ ढूंढते फिरोगे कहाँ करोगे भगवान की तलाश
खुद भगवान आकर बैठते हैं मां के चरणों के पास

Wednesday, May 1, 2024

ग़ज़ल पिता

करके  देख हर्ज क्या है एक बार आज़माने में
खामोश रहने से बड़ा  हुनर नहीं ज़माने में ।

लुटा दी जीवन भर की पूंजी बिटिया की शादी में
उम्र लग गई थी बाप को चार पैसे कमाने में ।

बड़ी मेहनत से जुटाता है एक बाप भोजन की थाली
पसीने की खुशबू है इसके हर एक दाने में ।

मां बाप बनोगे तो खुद ही जान जाओगे
बड़ा मजा आता है सब कुछ लूटाकर पाने में

Sunday, April 28, 2024

ताबीज़

इश्क़ न किया होता तो यूँ बर्बाद न होता
तू नहीं होती तो तेरा ख्वाब नहीं होता 

हुक्मरानों की बात पे न जाते अगर तुम
 शहर में कभी कोई फसाद नहीं होता

वक्त रहते मरहम रख देते ज़ख्म पर मेरे
तो नासूर में ये इतना मवाद नहीं होता 

ये दवाइयां अगर इतनी महंगी न होती तो
दुनियां में ताबीजों का कभी ईजाद नहीं होता

तकरीरें करते हो इलेक्शन के वक्त तुम इतनी
हम पूछते जब सवाल तो कोई जवाब नहीं होता

Sunday, April 21, 2024

फासला


 मदारी की डुगडुगी और
 चादर पर गिरते सिक्कों 
 के बीच का फासला 
 ही भूख है ।
 
पेशानी का पसीना 
और मिलने वाले मेहनताने 
के बीच की दूरी ही
गुरबत है ।

पतझड़ के बाद 
बसंत से पहले 
झांकती हुई कोंपलें
ही उम्मीद है ।

पलकों का 
लजा कर गिरना
और मचल कर उठने का
फासला ही इश्क़ है ।

अधपकी सुखी फसल
और आसमान में 
मंडराते बादल के बीच की दूरी 
ही आशाएं है ।

गुब्बारे बेचता हुआ एक बच्चा
गुब्बारे बंधे बांस और बच्चे के 
बीच की दूरी ही 
लाचारी है ।

papa

पापा आप दीर्घायु हो यही है मेरा अरमान
आपसे ही तो है ये छत ये दीवारें ये मकान।

मम्मी के श्रृंगार आप ही से सलामत है पापा ।
आप से ही है मम्मी के चेहरे की मुस्कान ।
     
पापा अब कभी खिलोने की ज़िद न करूंगी ।
न ही पिज़्ज़ा के लिए कभी करूंगी परेशान  ।
         
दो सुखी रोटी खा लुंगी नहीं चाहिए पकवान ।
बस आप खुश रहो पापा यही है अरमान ।
           
जो मांगती हूँ वही ला देते हो आप पापा ।
घर के मंदिर के आप ही तो हो भगवान ।
   
जानती हूँ आप रात रात भर सो नहीं पाते
Emiके लिए बैंक वालों के रोज़ फ़ोन आते

घर का किराया स्कूल की फीस
कैसे दूंगा यही रहती है न टीस

हम सब मिलकर लड़ेंगे हर मुसीबत से पापा ।
कभी कम न होने देंगे आपका आत्म सम्मान ।
            

पापा आप के बिना तो अधूरी है हमारी दुनियां ।
बताओ आप के बिना कौन बुलाएगा मुझे मुनियाँ
आप ही तो पूरे घर परिवार का अभिमान ।
         
       
किसके पेट पर सोऊंगी किसको चिढ़ाऊंगी
कौन बुलाएगा मुझे कभी पागल कभी शैतान । 
             
           
जिन बच्चों के सर पे पिता का साया नहीं होता
उनका इस दुनियां में कोई सहारा नहीं होता ।
आप ही हमारी पूजा आप ही हमारे भगवान ।
  

Sunday, April 14, 2024

राम गीत


सारे व्यजन मुझे तो ज्यों फीके लगे ।
स्वाद करुणा का जो है सिया राम में 

बात ऐसी किसी भी नगर में नहीं
बात अद्भुत निराली अवध धाम में ।

माना हम ये की भ्राता भरत तो नहीं
भक्ति में ऐसी कोई शर्त तो नहीं

भेष धरकर तो आओ कभी साधु का
दे दो हमको तुम्हारी चरण पादुका

गालियां सुनी सी है रास्ते रो रहे
बाट तेरी प्रभु हम सभी जो रहे

हर तरफ है अंधेरा नहीं रोशनी
फर्क भी अब नहीं है सुबह शाम में

प्रेम में अपना सब कुछ समर्पित किया
ऐसे निष्काम भ्राता भरत ही तो है  

प्रेम और भक्ति कोई अलग तो नहीं
प्रेम भक्ति की पहली शर्त ही तो है

सेवा रघुवर की जब से करने लगे
हृदय हमारा लगे न किसी काम में

लौटा दो

जहां बचपन बीता है मेरा 
वो ठाव मुझे लौटा दे ।
जहां बाल सखा रहते थे मेरे
वो गाँव मुझे लौटा दे  ।
बारिश के पानी में चलती थी वो
चाहे सब कुछ लेले मेरा
मेरी नाव मुझे लौटा दे ।

जून दोपहरी बिन चप्पल के 
बेफिक्र घुमा करते थे ।
नीम की छांव तले बैठकर 
खूब बातें किया करते थे
बिना whatsapp के ही 
दोस्त इकट्ठा हो जाते थे
डाल डाल पर चढ़कर
बेर निम्बोली खाते थे
फिर से जीना चाहता हूं बचपन
मेरी धूप मुझे लौटा दे
मेरी छाव मुझे लौटा दे 



जहां बचपन बीता है मेरा 
वो ठाव मुझे लौटा दो ।
जहां बाल सखा रहते थे मेरे
वो गाँव मुझे लौटा दो  ।
बारिश के पानी में चलती थी वो
चाहे सब कुछ ले लो तुम मेरा
पर मेरी नाव मुझे लौटा दो ।


सोचा कि कुछ पल तो 
आराम मिलेगा तुझको
अपने हिस्से के बादल 
सब सौंप दिए तुझको
मुझको भी सफर करना है साथी
मेरी धूप मुझे लौटा दो
मेरी छाव मुझे लौटा दो ।

नाप लिया करते थे 
धूप में सारी बस्ती
पतंग लूटने दौड़ लगाते
कैसी अजब थी मस्ती
वो कभी न थकने वाले 
मेरे पाँव मुझे लौटा दो  ।






Sunday, April 7, 2024

दोहे


कर्म दान भक्ति करे जोय
फल तोके ही होय
जोय पंडित सुमिरन करे 
तोहे पुण्य न होय ।

सहस्त्र घड़ी तु बावरे 
 पर निंदा में खोय ।
मुख में बाणी प्रेम की
कोई ना बैरी होय ।

भजन से ही राम मिले
भजन बड़ो अनमोल
लगते मेले धरम के
वहां पुण्य नहीं होय ।

अधर खोल तू हस बंदे
हंसी मिले बिन मोल ।
झरे बोल जब जिव्हा से
मीठी मिसरी घोल ।

पीले पात सदा झरे
बरगद करे न शोक । 
जो आवे सो जावगो
कौन सकेगो रोक ।। 

जल तप कर बन बादली
वन उपवन सब सींच ।
जो नर काम न आ सके
है मानुष वो कीच ।।


तीखा बोल भले चुभे
करे बहुत ही लाभ ।
सुई कागज़ पर चुभे
तब वा बने किताब  ।।

अंधे मनुज के वास्ते 
 दर्पण है बेकार
 बिन बुद्धि विद्या नहीं
 सौ सौ बात इक सार

सात छिद्र उर बंशी धरे
निकरे मीठे बोल ।
कष्ट से जीवन निखरे
कष्ट बड़ा अनमोल ।

औषध तो पीड़ा हरे
करे न शोध विकार
सतसंगती शोधन करे
बुरे हो लाख विचार

नख केश सो हठी नहीं
जित काटो उग आय
जिद बढ़ने की जो रखे
कौन मिटाने पाय ।

सूर्य चंद्र सो पथिक नहीं
पथ न कभी बिसराय
जो पथ छोडे आपणो 
उल्का सो जल जाय ।

धन यौवन दोय चंचला
एक दिन तय अभिसान
दोनों ही टिकते नहीं
मत कर तू अभिमान ।

धरती सो सहिष्णु नहीं
वृक्ष सो सहनशील
भूमि भार धरे जग को 
पेड़ सदा फल दीन ।

जितनी जरूरत आपकी 
उतना ही लो ख्वाब
इच्छा पूरी न होवे
मर गए सेठ नवाब

श्याम तुम्हारे नाम के 
चर्चे देश विदेश
अहंकार मिट जाएंगें 
कर्म रहेगा शेष

श्याम तुम्हारे नाम के 
चर्चे देश विदेश
बाबा की कृपा हुए 
तो उसकी ऐश ही ऐश

गोवर्धन सो पर्वत नहीं 
वृंदावन सो धाम
परिक्रमा जो नर करे
बने उसी के काम

नीलांचल सो पर्वत नहीं 
कामाख्या सो धाम
 दर्शन नित मां का करे
 बने उसी के काम

नदी किनारे बसा हुआ 
शुक्रेश्वर एक धाम
लोटा भर जो अर्ध्य दे
वो खूब कमाए दाम

ना पूजे तो पत्थर है 
पूजे तो भगवान 
मन वचन से ध्यान धरे 
तो मूरत में हो प्राण


घड़ी बंद जो कोई करे
समय बंद नहीं होय
झूठ छिपाया ना छिपे
सत्य का अंत न होय

सूरज जो बादल छिपे
क्षणिक उजाला खोय
कह नायाब बादल हटे
देख अंधेरा रोय

जड़ ना बदले पेड़ की
बदले पत्ती फूल
जो जड़ को हानि करे
मिट जावे वो मूल

बिजली चमके जोर से
क्षणिक उजाला होय
छोटो सो दीपक जले
देख अंधेरा रोय

नारायण से भक्त बड़ो
हरि से बड़ो हरिनाम
सागर मुंह बाए खड़ो
केवट आयो काम ।
राम जी के केवट आयो काम

 वाणी को वीणा बना
 मुख से मीठा बोल
 दूर करेगा अपनों से 
 तेरे कड़वे बोल
रे भैया तेरे कड़वे बोलt

शब्द (तर्क)कि ताकत बड़ी हुए
मत न जोर से न बोल
बारिश में फसलां उगे
नहीं बाढ़ को मोल

परिधान पर सुई चुभे
बणे मनुज को लिबास
कड़ी बात से चरित बने
भले न आवे रास

अपने भाग को पुण्य तो
निज कर्म से ही होय ।
जै पंडित सुमिरन करे 
तोहे पुण्य न होय ।

सहस्त्र घड़ी तु बावरे 
 पर निंदा में खोय ।
मुख में बाणी प्रेम की
कोई ना बैरी होय ।

श्रद्धा से ही राम मिले
भजन को मोल न कोय ।
लगते मेले धरम के
वहां पुण्य नहीं होय ।

अधर खोल तू हस बंदे
हंसी मिले बिन मोल ।
झरे बोल जो जिव्हा से
मीठी मिसरी घोल ।

संकट सब कट जावेगों
धरो हिये हरिनाम
साथी सब होते सुख के
दुख में बस हरिनाम 


जग बिसराई देत है 
रखियो मत ना आस
खाली बोतल बोझ लगे
बुझ जाए जब प्यास ।

याद करे न भोर में
सूरज हो आकाश
घिरे अंधेरा सांझ का 
दीपक होता काश ।















Sunday, March 17, 2024

लौटा दे

जहां बचपन बीता है मेरा 
वो ठाव मुझे लौटा दो ।

जहां बाल सखा रहते थे मेरे
वो गाँव मुझे लौटा दो  ।

बारिश के पानी में चलती थी जो
चाहे सब कुछ ले लो मेरा तुम
पर वो कागज़ की मेरी नाव मुझे लौटा दो ।

जून दोपहरी बिन चप्पल के 
बेफिक्र घुमा करते थे ।
नीम की छांव तले बैठकर 
खूब बातें किया करते थे
बिना whatsapp के ही 
दोस्त इकट्ठा हो जाते थे
डाल डाल पर चढ़कर
बेर निम्बोली खाते थे
फिर से जीना चाहता हूं वो बचपन
मेरी धूप मुझे लौटा दे
मेरी छाव मुझे लौटा दे 

नाप लिया करते थे 
धूप में सारी बस्ती
पतंग लूटने दौड़ लगाते
कैसी अजब थी मस्ती
बिन ब्रांडेड जूतों के भी 
दिन भर क्रिकेट खेलते थे 
एक हवाई चप्पल से
राह के सब कंकर झेलते थे
वो कभी न थकने वाले 
वो कभी न रुकने वाले
 वो सामर्थ्य मुझे लौटा दो
वो पाँव मुझे लौटा दो  ।




Friday, March 15, 2024

ख्वाब न होता


इश्क़ न किया होता तो तूं यूँ बर्बाद न होता
आंख न लगती तो तेरा ख्वाब न होता 

हुक्मरानों की बात पे न जाते अगर तुम
किसी शहर में कभी कोई फसाद नहीं होता

वक्त रहते अगर मरहम रख देते ज़ख्म पर मेरे
तो नासूर में ये इतना मवाद न होता 

दवाइयां अगर इतनी महंगी न होती तो
दुनियां में ताबीजों का कभी ईजाद नहीं होता

तकरीरें करते हो इलेक्शन के वक्त तुम इतनी
हम पूछते जब सवाल तो कोई जवाब नहीं होता

Tuesday, March 12, 2024

कागज़ तो दिखाना होगा पार्ट 2

इसी में तेरा भला है की कर लो तुम
घुसपैठ का कबूलनामा
निकल लो जल्दी तुम यहाँ से
पकड़ कर अपना पैजामा
वो लेकर आ गया जो बुलडोज़र तेरी
अवैध बस्तियों में
तो कसम खुदा की गुले गुलज़ार 
तुम्हारा पैखाना होगा ।
क्योंकि तुझे कागज़ तो दिखाना होगा ।

अब तुमको कौन फ़र्ज़ी राशनकार्ड 
बनवा कर देगा ।
तुम कैसे डकार पाओगे हमारे लोगों का 
मनरेगा ।
इसके लिए तुम्हे बंगाल या केरल जाना होगा
अब इस खयाल को दिमाग से भुलाना होगा
क्योंकि कागज़ तो दिखाना होगा

ये सल्तनत है ऐसे शख्स के हाथों में 
जो बिकता ही नहीं ।
जो जालीदार टोपियों में कभी भी 
दिखता ही नहीं ।
वो शिव भक्त पिछवाड़ी पर ऐसा डमरू बजाएगा
की तुझको सच में जालिम लोशन 
लगाना होगा 
क्योंकि तुझे कागज़ तो दिखाना होगा ।

तू कब तक बचेगा कब तक टालेगा
मोटा भाई तेरी पूरी कुंडली खंगालेगा
तू रुका रहा यहां कितने दिन अब तक
हर एक दिन का हिसाब चुकाना होगा 
क्योंकि कागज़ तो दिखाना होगा



Thursday, February 29, 2024

सांसों की EMI

छोटी सी सीख है हो सके तो सबको बताइए
दुश्मन कम जीवन में दोस्त ज्यादा बनाइये

इससे पहले की सांसों की कुर्की करदे खुदा
गुनाहों की emi नेकी की किश्तों से चुकाईये

कर्मों के चेक तुम्हारे बाउंस न हो जाए कहीं
भलाई के बैलेंस को थोड़ा तो और बढ़ाइए

ईमान के ही नोट ही चलते हैं सदा वहां
झूठ के सिक्कों को व्यर्थ न बजाइये

कविता को मेरी तुम तो स्कैनर बना के रख
मुस्कुराहटें सभी को upi करते जाइये 

सांसों की नोटबन्दी अब हुई कि तब हुई
चमड़े के इस खोल पर इतना न इतराईये

पद और अहंकार ने कितने दोस्त छीन लिए 
भूलकर कडवाहटें अब तो हाथ बढ़ाइए ।

मनोज नायाब--

Sunday, February 25, 2024

हवाओं पे एतबार मत करना

नायाब --



दिल होता है कांच का
हर किसी से प्यार मत करना

बड़ी हसरतों से बुनी है इश्क़ की ओढ़नी
तुम इसको तार तार मत करना

हो लाख तूफानों से याराना मगर
जलता चिराग जो हाथो में हो तो
हवाओ पर एतबार मत करना

मुझे अच्छे लगने है धोखे दोस्ती में
अटका रहने दो भीतर ही 
ये खंज़र दिल के पार मत करना ।

दिल करे ज़ख्म देने का तो कलेजा हाज़िर है 
तुम मगर कभी पीठ पे वार मत करना 

बड़ा आदमी कैसे बनें

नायाब --
अपनी जिव्हा पे नाम लिखो 
किसी रसूखदार के तलवे का ।
बड़ा आदमी कैसे बनें सुन
राज बताऊं इस जलवे का ।

दिखलाओ फ़र्ज़ी देश प्रेम
लगाओ गांधी का फ़ोटो फ्रेम
करो बात अहिंसा की और फिर
इंतज़ाम करो किसी बलवे का ।
बड़ा आदमी कैसे सुन......
    राज बताऊं जलवे का
    
मोटी सी एक फ़ाइल बनाओ
बाढ़ राहत के फ़र्ज़ी आंकड़े सजाओ
मंत्री जी को  हिस्सेदार बनाकर 
मोटा फण्ड allocat कराओ
लो बस जुगाड़ हो गया हलवे का ।
बड़ा आदमी कैसे सुन...
       राज बताऊं जलवे का....
       
 एक नकली सीमेंट से 
 घटिया सा पुल बनाओ
 सारा पैसा बाटकर खा जाओ
 उद्घाटन से पहले ही वो गिर जाए
 तो और कमाई की खातिर उठाने का
लो ठेका पाओ फिर उस मलबे का




Ram geet

नायाब --


सारे व्यजन मुझे तो ज्यों फीके लगे ।
स्वाद करुणा का जो है सिया राम में 

बात ऐसी किसी भी नगर में नहीं
बात अद्भुत निराली अवध धाम में ।

माना हम ये की भ्राता भरत तो नहीं
भक्ति में ऐसी कोई शर्त तो नहीं

भेष धरकर तो आओ कभी साधु का
दे दो हमको तुम्हारी चरण पादुका

गालियां सुनी सी है रास्ते रो रहे
बाट तेरी प्रभु हम सभी जो रहे

हर तरफ है अंधेरा नहीं रोशनी
फर्क भी अब नहीं है सुबह शाम में

प्रेम में अपना सब कुछ समर्पित किया
ऐसे निष्काम भ्राता भरत ही तो है  

प्रेम और भक्ति कोई अलग तो नहीं
प्रेम भक्ति की पहली शर्त ही तो है

सेवा रघुवर की जब से करने लगे
हृदय हमारा लगे न किसी काम में