ग़ज़ल ये दीवाना
ग़ज़ल
ये दीवाना तेरे साथ बगीचे में जानती हो क्यूँ चला आता है ।
तुम साथ होती हो तो गुलाबों को चिढ़ाने में मज़ा आता है ।
सच कहूँ मुझसे फूलों की हालत देखी नहीं जाती उस वक्त
जब भंवरा भी उन्हें छोड़ कर बस तेरे इर्द गिर्द मंडराता है ।
तुम जो निकलती हो रात को भूले से कभी खुले गेसुओं में ।
चाँद को भी ज़मीं पे बदली से घिरा इक चाँद नज़र आता है ।
मनोज नायाब
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