CAA/ NRC
मेरे घर के गेहुंओं में कुछ घुन मिल गए हैं, गुलाब के संग ज़हरीले फूल खिल गए हैं । अपने बागीचे को साफ रखना हमारा हक था, ज़रा सा कीटनाशक डाला तो वो हिल गए हैं । मज़हबी उन्माद में बस्तियां तुमने भी जलाई थी, हमें भी अब तेरी करतूतों के सुबूत मिल गए हैं । बेमतलब कोई लट्ठ खुरदरा नहीं होता जनाब, सच क्या किया तेरे पिछवाडे क्यों छिल गए हैं । मनोज "नायाब" ( स्तंभकार, लेखक, कवि)