ग़ज़ल #ghazal#
मुस्कुराहट यहां गिरवी और जुबा पर ताले हैं । ये शहर किसी संग दिल निज़ाम के हवाले हैं । ए मंज़िल तुझे तसल्ली नहीं तो लौट जाते हैं मगर सुबूत-ए-सफर ये है कि पैरों में छाले हैं । ज़ुल्म की दास्तां अब कैसे बताएं तुझे नायाब ज़रा देखो ज़मी पर पड़े हुए मुंह के निवाले हैं । राह-एे-इश्क को यूं हल्के में न लिया करो तुम मुहब्बत में भी चली जाती शतरंज की चालें हैं । मनोज 'नायाब'