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आंखे

दोस्त आंखों की तरह न हो जो एक दूसरे के आंसू  न पोंछ सके  न देख सके जो एक दूसरे के हिस्से के आंसू न बहा सके  न रोक सके मगर कभी सोचता हूँ मगर इन आंखों के पास  जाने कौनसी अदृश्य आंखें हैं । जो एक दूसरे से दूर रहकर भी दृष्टि समान होती है रोते भी एक साथ है । हंसते भी एक साथ है । जो पलकें साथ उठाए और साथ गिराए । जो जागते भी साथ हो सोते भी साथ हो । तब सोचता हूँ  दोस्ती सचमुच इन आंखों जैसी ही हो । जो दूर भी हो तो एक दूसरे के एहसास को समझे ।