गीत
संस्कृति है चूल्हे में परंपराएं पानी में रिश्तों को भी तोलते हैं अब लाभ हानि में चाचा चाची ताऊ वाला प्यार कहीं खो गया पश्चिम की संस्कृति का बीज कौन बो गया एक बच्चे वाला ट्रेंड जब से ये आ गया मौसी बुआ फूफा ये तो सबको ही खा गया दादी के भजन देखो गुम कहीं हो गए सुबह को गंगा गाने वाले सुर सो गए रातों को रामायण की चौपाई सुनाते थे कांधे पे बिठा के हमें मेले में घुमाते थे दीवाली को एक बार कपड़े सिलाते थे चार आने वाली हमें कुल्फी खिलाते थे दीपक जलाने वाले मोमबत्तियां बुझाएंगे Dj वाले बाबू कहाँ लोक गीत गाएंगे दिन वो पुराने अब फिर नहीं आएंगें बातें अब रह गई किस्सों में कहानी में संस्कृति है चूल्हे में परंपराएं पानी में