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Showing posts from January, 2023

हवाओं की अदालत

हवाओं की अदालत में  आज चिरागों पे मुकदमा है । फैसला सुनने की खातिर उजालों की भीड़ जमा है । परवानों के कत्ल का इल्जाम  और कटघरे में शमा है । ए चरागों घर जलाना ठीक नहीं बाक़ी तो तेरे सौ अपराध क्षमा है । अदालत मुंसिफ गवाह क्या कहूँ तेरा तो यहां पूरा महकमा है । अब क्या जुगनू गवाही देंगें  हारते दियों को रोशनाई देंगे जिनसे थी रोशनी की उम्मीद उन चरागों से घर जला है

जोशी मठ

गांव को गांव रहने दो शहर मत बनाओ ना अमृत सी नदियों को जहर मत बनाओ ना ऐसे ही रहने दो मेरे कच्चे खपरैल के ये घर  इन्हें तोड़ कर तुम यूं कहर मत बरपाओ ना काटकर पर्वत का मस्तक उगाकर सूर्य नकली तुम आस की भोर को मेरी अंधेरी दोपहर मत बनाओ ना घने पेड़ों के नीचे सोकर गुजारी है कई रातें काटकर जंगल मेरे तुम अपने घर मत बनाओ न

महंगा बहुत पड़ता है जी

दुश्मन जब भी मिले राह में  अनदेखा कर देना जी बात बात में बदला लेना  महंगा बहुत पड़ता है जी इश्क से कर ली मैंने तौबा हाल जो देखा आशिक का महबूबा को तोहफे देना महंगा बहुत पड़ता है जी जब भी घर जाओ तुम हां हां बस कहना जी बीवी को ना कहना  महंगा बहुत पड़ता है जी अपने बाप की भी नहीं सुनते तेरी तो क्या बिसात है जी नायाब से पंगा मत लेना क्योंकि महंगा बहुत पड़ता है जी

मदारी

जनता की गाढ़ी मेहनत के क्यों वो सिक्के उछाल रहा है । जब भी मांगो हिसाब उनसे क्यों नेता मेरा टाल रहा है । यह निरुत्तर प्रश्न सभी को युगों युगों से साल रहा है । मदारी बंदर को नायाब या फिर बंदर मदारी को पाल रहा है ।