इश्क ए व्यापार ishk e vyapar
इश्क ए व्यापार
क्या कहूँ पेशा उनका इश्क-ए-व्यापार निकला
उजाले में जाके देखा खंज़र आर पार निकला ।
हम तो कभी झुके ही नहीं हुस्न की अदाओं पे
पर क्या कहूँ की दिल ही बड़ा गद्दार निकला ।
जब रखा था कलेजे में दिल तो पत्थर सा था
अब अरसे बाद संभाला तो ज़ार ज़ार निकला ।
मर गया तिश्नगी से पर घूंट भर भी नहीं पिया
वादे से "नायाब" तू तो बड़ा ही खुद्दार निकला ।
" मनोज नायाब "
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