Husn ki aag हुस्न की आग

ग़ज़ल
हुस्न की आग में इश्क भी खाक हो जाता है
सजदा सादगी से किया तो पाक हो जाता है

कौन चल सका है तेरी शोखियों की धार पे
नज़रें मिली नहीं की दिल हलाक हो जाता है

ये तो नज़र नज़र का खेल है मेरे दोस्त
यूँ तो बुरी नज़र से शहद भी आक हो जाता है

संसद में आज फेंकी नहीं गयी कुर्सियां क्यूंकि
ऐसा भी कभी कभी नायाब इतेफाक हो जाता है

मनोज नायाब

सज़दा#sansad#pak#aag

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