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Showing posts from March, 2019

Vasiyat

एक पुराना मकान कुछ पीतल के बर्तन थोड़ी सी किताबें माँ की एक बनारसी साड़ी पिताजी के हाथ का एक चांदी का ताबीज़ दीदी की भेजी हुई स्पंज वाली राखी गुल्लक में कुछ सिक्के सर्दियों के लिए एक पुरानी रज़ाई और दोस्तों की बचपन की तस्वीरें मेरी वसीयत में बस यही दौलत है ।

Ghazal

ए चांद बदली का घूंघट तो हटा ये ज़माना तुझे देखना चाहता है । तैयार हैं कैद होने को ज़ुल्फ़ों में उनकी अगरचे जाल वो फैंकना चाहता है । ये फितरत नहीं तो और क्या है सांप की पंख दे दिए फिर भी रेंगना चाहता है । ये जज़्बा इश्क़ से ही पैदा हो सकता है नायाब पत्थर पर नाखून से चित्र उकेरना चाहता है । मनोज " नायाब "

Kya bura kiya

धुंए को आग लिख दिया क्या बुरा किया पत्ते को बाग लिख दिया क्या बुरा किया । माना लिखना था नेताजी मगर हमने जो नेताजी को नाग लिख दिया क्या बुरा किया । पैंतरे उनके देख कर लिखना था चालाक हमने घाघ लिख दिया तो क्या बुरा किया । सुबूत ए वफ़ा मांगने वालों को कलंक लिखना था जो हमने दाग लिख दिया तो क्या बुरा किया । ये मुल्क किसी खानदान की जागीर तो नहीं नायाब ने बेलाग लिख दिया तो क्या बुरा किया । मनोज " नायाब "

Ub lahor ko jalna hoga ,#pulwamaattack#

   "अब लाहौर को जलना होगा " बजवाकर ताली गणतंत्र दिवस पर फिर हो जाते हो खामोश । क्यों हर साल दिखाते हमें परेड में अग्नि सुखोई और ब्रह्मोस । नरम घास के छोड़ बिछौने अब अंगारों पे चलना होगा । इधर जल रही यदि चिताएं तो उधर लाहौर भी जलना होगा । दिखलाओ अपना रौद्र रूप तुम कर दो सेना को आदेश । भले छोड़ के आ जाना उधर धड़ों को पर नर मुंडों को लाना तुम देश । बिलख रही है माँ शहीदों की उनके चरणों में कर देना पेश । लहू नहीं आएगा दुश्मन का जब तक खुले रहेंगें विधवाओं के केश । बड़ी उम्मीदों से  बांधा था दामोदर तेरे सर पे हमने सेहरा । बिन pok तुम जो आये तो मोदी फिर मत दिखलाना चेहरा । और किसी दिन बनवा देना तुम पक्की सड़कें और लंबे पुल पहले निपटा दो इन सुअरों को दिल में चुभी है गहरी सूल । है 'नायाब' सिपाही तूं कलम का अब न बैठो यूँ चुपचाप । कांप उठे सीना दुश्मन का कर शब्दों की ऐसी पदचाप । मनोज 'नायाब"