Posts

Showing posts from November, 2020

जीने का सामान

दोनों हथेलियों से उखाड़ी हुई बगीचे की घास तालाब में फेंके हुए कंकर वो सूखा हुआ गुलाब वो आर्चिज गैलेरी से खरीदे हुए ग्रीटिंग्स कार्ड और उन पर बदल कर लिखा हुआ नाम  दोस्तों से उधार ले कर तुमको दिए हुए उपहार एक ही स्ट्रॉ से कोल्ड्रिंक पीना वेटर के आते ही हड़बड़ा कर दूर हो जाना  पार्क के सिक्योरिटी गार्ड का व्हिसल बजा बजा कर  पार्क खाली करने की हिदायत देना  और फिर दोनों का अलग अलग बाहर निकलना और चेहरे पर ना छुप सकने वाली घबराहट वो सिगरेट न पीने की कसम दिलाना वक्त पर खाना खाने की हक़ से हिदायतें देना बढ़े हुए नाखूनों को देखकर  स्कूल टीचर की तरह डांटना तुम आजकल बदल गए हो  कहकर बनावटी गुस्सा दिखाना अपनी चुन्नी से मेरे माथे का पसीना पोछना  तुम कहाँ हो किस हाल में हो नहीं पता  तुम साथ नहीं हो तो बस यही यादें  आखिरी सांस के इंतज़ार में  बस अब मेरे जीने का सामान है । मनोज नायाब

रात रात भर जले

रात रात भरे जले वो देहरी पर तब रोशन तुम्हारी दीवाली हुई । दियों से पूछो जल जल कर  कैसे उनकी रूह काली हुई । धूप निकली तो भूल गए हुज़ूर चरागों के साथ कैसी बेखयाली हुई । इश्क की फसल कटी तो जला दिए खत इश्क़ न हुआ खेतों की पराली हुई । सांझ के सिंदूरी सूरज को निचोड़ा था तब तुम्हारे होठों की ये लाली हुई ।

अग्नि कुंड

अग्नि कुंड के सरकंडों से एक एक आखर सेका है उबड़ खाबड़ पथरीली सी राहें आलिंगन को आतुर कंटीली बाहें  जो बिखर न जाए कर्म पथ पर कलम के चिमटे से हर आखर को उलट पलट कर देखा है ।       अग्नि कुंड के सरकंडों में       एक एक आखर सेका है ।। देख के आंसू तुम मौन न रहना हो ज़ुल्म कहीं तो चुप न रहना जय घोष की आवाज़ें बड़ी भाएगी चिकनी राहें तुमको ललचाएगी पंख तुम्हारे कतरने को आतुर जाल किसी ने फेंका है अग्नि कुंड के सरकंडो में एक एक आखर सका है । उजले कपड़े पहन के आएंगे अंधरे तुमको भरमाएँगे  ज्ञान चक्षुओं से देखो तो पाओगे धूर्त अंधरे और उजालों के मध्य अब बड़ी ही पतली रेखा है        अग्नि कुंड के सरकण्डों में        एक एक आखर सेका है ।। सत्य तुम्हारी बाती होंगी कर्तव्य तुम्हारा होगा तेल दीपक बन करो उजाला है तुम्हे मिटाना तम का खेल तेरे भीतर जलने की आतुरता को हमने भी तो देखा है ।          अग्नि कुंड के सरकण्डों में           एक एक आखर सेका है ।।            मनोज नायाब   
आसमान की छाती से चिपके हुए चांद को नोच कर उतार लूं  कढ़ाई में डाल पिघला दूं और रकाबी में उड़ेलकर  उसी पिघले दूध से तुम्हारा श्रृंगार कर दूं  और टांक दूं सितारे तुम्हारे गेसुओं की लटों में तू बस एक बार मुस्कुराने का वादा तो कर मेरी जान ।

नारों से निकालो

भूख  कर्ज़ और अत्याचारों से निकालो मैं किसान हूँ मुझे झूठे नारों से निकालो घुप्प अंधेरा और चांद भी बादलों की ओट ज़रा सी रोशनी इन सितारों से निकालो डूबना था इन समंदर की गहराइयों में यार कोई तो मुझे इन किनारों से निकालो अभी से कौन कर रहा है ये पतझड़ की बातें शाख पर बैठे उल्लुओं को बहारों से निकालो निवाला न बन जाए कहीं साजिशों का नायाब इनको को मकड़ियों के जालों से निकालो ।

अब मैं ज़मीन नही रहा

तसल्ली इस बात की है  की मैं आसमान हूँ । अफसोस ये की  अब मैं ज़मीन नहीं रहा । मैं हर जगह हूँ इसीलिए शायद कहीं का नही रहा ।

एक लाश हूँ मैं

होना था ज़मीं मगर आकाश हूँ मैं । बस इसीलिए ज़रा सा हताश हूँ मैं । अब खुद को ज़िंदा समझू की मुर्दा मैं सांस लेती हुई सी एक लाश हूँ मैं । वफ़ा का खजाना होकर क्या फायदा कोई पा न सका वो तलाश हूँ मैं । चाहे जितनी दूर चले जाओ तुम मुझसे  पहले से ही तेरे दिल के पास हूँ मैं । फिर आने का वादा कर गई थी मगर न लौट सकी वो बदकिस्मत सांस हूँ मैं । कैद कितने दरिया थे मेरी आंखों में मगर फिर भी बुझ न सकी वो प्यास हूँ मैं । तेरे कांधे तक कैसे पहुँचूँ तू ही बता नायाब पैरों तले कुचली हुई सी घास हूँ मैं ।