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Showing posts from June, 2019

सफ़हे खोलती

सफ़हे खोलती पढ़ती सिसकती और रात भर जाग कर थक हार कर सो जाती । मेरी ज़िंदगी की दराज़ तुम्हारे खतों के बगैर मानो बेवा सी हो जाती । तुम नहीं भी हो तो भी तुम्हारे भेजे खत मंगलसूत्र के जैसे थे मानो किसी सिपाही की जंग से कोई खबर नहीं आयी हो फिर रोज़ाना उस मंगलसूत्र को चूमकर उसके आमद का इंतज़ार करती । तेरी याद जैसे खतों की बंजर ज़मी पर हर्फ़ों के बीज बो जाती । सफ़हे खोलती पढ़ती सिसकती रात रात भर जाग कर थक हार कर सो जाती ।

ये परिवार एक नदी

आप बिताएं हमारे संग भरी पूरी खुशहाल सदी । देहरी नहीं लांघ पाएगा संकट भूले से आ भी जाए यदि । आप मज़बूत किनारा ये परिवार एक नदी । आप है तो खुशियां है, आप है तो रौनकें हैं, आप है तो त्योंहार अच्छे लगते हैं, आप है तो संस्कार है, आप है तो तो ये परिवार है, आप है तो खिलखिलाता संसार है । आप मंत्रों की सी ताकत हो आप दोहों की सी प्रेरणा हो आप ग़ज़लों सी मस्ती हो आप भजनों की भक्ति हो आप है तो बहुएं बेटी है आप है तो मुसीबतें नींद में लेटी है । ये आपका जन्मदिन नहीं त्योंहार है । आपसे कायम सब अपनों में प्यार है ।