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क्योंकि वो माँ होती है

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Naayaab -- एक सरल किन्तु ह्रदयस्पर्शी कविता -: from my blog www.manojnaayaab3.wordpress.com क्यूंकि वो माँ होती है… तुम घर ना लौटो रात को जब तक वो नहीं पल भर भी चैन से सोती है               क्यूंकि वो माँ होती है । तू खा ले मेरे पेट में जगह नहीं है पर वो असल में भूखी होती है                 क्यूंकि वो माँ होती है । दौलत के नशे में तूने कितनी बार झिड़का है पर वो उपर से हंसती और अंदर से रोती है                   क्यूंकि वो माँ होती है । जब हर तरफ फैला हो अन्धकार तो नायाब वही उम्मीद की ज्योति है                    क्यूंकि वो माँ होती है । मनोज ” नायाब “ सूचनार्थ-: मेरे ब्लॉग की सभी रचनाएँ मेरी स्वरचित है ।

सोन चिरैया

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 ये माएं भी बड़ी अजीब होती है न जब काम नहीं करती थी तो कहती थी इतनी बड़ी हो गई कुछ काम किया कर अब जा रही हूं तो कहती है बहुत छोटी है अभी उम्र ही क्या है । वो सच उस वक्त भी कह रही थी  सच इस वक्त भी कह रही है तब संस्कार के लिए अब ममता  बह रही है । 1  सोन चिरैया तुझ बिन बगिया कितनी सुनी हो जाएगी । तुझ बिन घर की ये दीवारें हम सबको काट ज्यों खाएगी पापा जब आएंगे सांझ को  तब तेरी कमी सताएगी तुझ बिन फीकी होली होगी सुनी सी दीवाली होगी तीज त्योंहार में हम सब होंगे पापा की लाड़ो न होंगी । कौन सजाएगा रंगोली अब  कौन दिए जलाएगी  सोन चिरैया .... 2. दादा जी की लाडली पोती बड़ी मम्मी छुप छुप के रोती मेरे आंगन की गुड़िया हमसे सदा दूर हो जाएगी एक तेरे जाने से लाड़ो घर की  रौनक ही खो जाएगी       सोन चिरैया..... 3. सुना हो गया तेरा कमरा जहां रात भर पढ़ती थी क्या बोलेंगे उस शीशे को जहां तू सजती संवरती थी गुमसुम सा हो गया है भाई जिससे रोज झगड़ती थी पवन बाबा अब किसको चिढाएं कभी इतरती कभी डरती थी मम्मी किसको लाड़ लड़ाए किसके सर पे हाथ फिराएगी     सोन चिरैया तुझ बिन.... सोन चिरैया.....  ये सच है घर की देहरी पर अब  दिए नही