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Showing posts from May, 2024

वीथिका

समय हुआ  कुछ टहनियों के  वृक्ष से बिछड़ने का, किंतु शोक नहीं,  तिल तिल धूप में जलने से अच्छा सूख कर निरा ठूंठ बनने से अच्छा कुल्हाड़ी की  मूंठ बनने से अच्छा वीथिका बन जाऊं हवनकुंड की आहुति कहलाऊँ दे दूं अग्नि को आकार  अच्छा है कि हो जाए  किसी की  कामनाएं स्वीकार ।

ग़ज़ल

तुमने जिस्म जलाया है उसने थामा बाहों में फर्क इतना भर था तपती धूप औ छाओं में हम तो डूबेंगे ये पहले से ही तय था क्योंकि खुद छेद किये हैं हमने खुद ही अपनी नावों में फूल मज़ारों में फल बाज़ारों में बिकने चले गए अब पेड़ बेचारे रह गए अकेले अपने गाओं में निकल पड़ता हूँ बरबस ही तेरे घर की तरफ कोई पहना दो जंजीरे मुझ को मेरे पाओं में लगता है गुजरी थी वो इधर से अभी अभी खुशबू उनके जिस्म की है  इन हवाओं में रहने दो इलाज मेरा बचना नामुनकिन सा है  इश्क का बीमार हूँ भरोसा कम है दवाओं में ।

मां

1 . काला टीका रोज़ माथे पर लगाती थी मां दुनिया की हर तोहमत से बचाती थी जब भी कोई बुरी नज़र मेरे घर पर आती थी मां को देखकर वो वहीं से लौट जाती थी । (अब महसूस कीजिये ममता के स्पर्श को ) 2. माँ कन्हैया की कहानियां सुनाकर सुलाती थी झीनी सी एक चादर ओढाती थी सर पे प्यार से हाथ फिराती थी और नींद आने के बाद माँ मेरा माथा चूमकर चली जाती थीं । जब भी कोई..... 3. आज कर्कश सी अलार्म से रोज़ उठना होता है मुझे एक वो दिन भी थे जब मां राजकुंवर की तरह  सुबह सवेरे माथा चूमकर मुझे उठाती थी ।    **जब भी कोई बुरी नज़र मेरे घर पर आती थी मां को देखकर वहीं से लौट जाती थी । 4. बड़ा हो गया न मैं मां अब तो रो भी नहीं पाता  हूँ Tension इतनी की रात रात भर सो नहीं पाता हूँ । और inxiety के कारण नींद की गोलियां खाता हूं  अरे क्या ग़ज़ब की डॉक्टर थी मेरी माँ  बस थपकियाँ दे दे कर मिनटों में सुलाती थी ।     **  जब भी कोई बुरी नज़र मेरे घर पर आती थी मां को देखकर वहीं से लौट जाती थी । 5. अब जो खाते है सोशल मीडिया पर रोज दिखाते हैं किसी की नज़र न लगे इसलिए मेरी मां मुझे दूध भी आँचल से ढककर पिलाती थी      ** जब भी कोई बुरी नज़र मेरे घ

13 का पहाड़ा

थोड़ा तिरछा है थोड़ा आड़ा प्यार तुम्हारा 13 का पहाड़ा ना भूलूँ ना पूरा ये याद रहे कोई पूछे न ये फरियाद रहे ज़िक्र आए जब जब भी तेरा जमें जुबां ज्यों पौष का जाड़ा           थोड़ा तिरछा है थोड़ा आड़ा          प्यार तुम्हारा 13 का पहाड़ा जीवन के अंक गणित का सबसे मुश्किल पाठ हो तुम न खोल सका कभी मैं पूरा इतनी मुश्किल गांठ हो तुम कभी एक दिन होकर मायूस दिल की कॉपी का पन्ना फाड़ा        थोड़ा तिरछा है थोड़ा आड़ा        प्यार तुम्हारा 13 का पहाड़ा

जब भी कोई बुरी नज़र मेरे घर पर आती थी

जब भी कोई बुरी नज़र मेरे घर पर आती थी यहां एक मां रहती है ये देखकर लौट जाती थी आज कर्कश अलार्म से उठना होता है रोज़ मुझे मगर बचपन में किसी राजकुमार से कम न थे  मां जब सवेरे माथा चूमकर उठाती थी । रोजाना कन्हैया की कहानियां सुनाकर मुझे सुलाती थी सोने के बाद भी माँ मेरा माथा चूमकर ही जाती थीं । आज  inxiety के कारण नींद की गोलियां खाता हूं तब भी नहीं सो पाता हूँ । ग़ज़ब की डॉक्टर थी मेरी माँ बस थपकियाँ दे कर मिनटों में सुलाती थी  अब तो जो खाते है सोशल मीडिया पर रोजाना दिखाते हैं एक वो वक्त था जो किसी की नज़र न लगे  इसलिए मुझे मां मेरी दूध भी आँचल ढककर पिलाती थी घी तेल के कनस्तर भरे पड़े हैं मगर खा नहीं सकते एक वो दौर था जब सबसे नज़रें बचाकर मेरी माँ सबसे ज्यादा मेरी रोटियों पर घी लगाती थी । उस वक्त पिज़्ज़ा और बर्गर तो नहीं थे मगर माँ सर्दियों में गोंद के मोटे मोटे लड्डू बनाती थी माँ कम पढ़ी लिखी थी उसको गणित नहीं आती थी 4 रोटी खिलाकर मां मेरी 3 गिनवाती थी अब बीमार होता हूँ तो गर्म पानी भी नहीं मिलता  पहले जुखाम भी हो जाता तो माँ मेरी तुलसी का काढा बनाती थी । जब पिताजी पीटने को दौड़ते थे तो  मां ही म

ग़ज़ल पिता

करके  देख हर्ज क्या है एक बार आज़माने में खामोश रहने से बड़ा  हुनर नहीं ज़माने में । लुटा दी जीवन भर की पूंजी बिटिया की शादी में उम्र लग गई थी बाप को चार पैसे कमाने में । बड़ी मेहनत से जुटाता है एक बाप भोजन की थाली पसीने की खुशबू है इसके हर एक दाने में । मां बाप बनोगे तो खुद ही जान जाओ खुश होते है बच्चों पर सब कुछ लूटाकर पाने में ।