भाई भाई में
बाबूजी ने तख़्सिम करी जब दौलत भाई भाई में तब भगवान नज़र आया था सबको पाई पाई में । बचपन में लड़ जाते थे जिस भाई की खातिर उन रिश्तों को धकेल दिया पैसों की अंधी खाई में कभी हिमालय के विराट स्वरूप सा दिखता है प्रेम सिमट जाता है महज़ कभी ये अक्षर ढाई में नहीं असंभव कुछ भी जग में दोस्त मेरे चाहोगे तो मिल जाएगा पर्वत भी तुमको राई में ।