" Ghazal " teri aankhon ki maykashi

ग़ज़ल
तेरी आँखों की मयकशी का नहीं कोई जवाब 
इतना नशा की बनी ही नहीं ऐसी कोई शराब

अब ये जाना की अश्कों में क्यूँ होता है नमक 
दर्द ए समंदर जो पाल रखे है दिल ने बेहिसाब

सुनो बे पर्दा यूँ छत पे न जाया करो तुम आइंदा
देखा नहीं जल रहा है किस कदर ये आफताब।

चाँद जन्नत खुदा सब को आजमाकर देखा मैंने
"नायाब" हर बार लगे तुम ही तुम मुझे लाजवाब 

"मनोज नायाब"
#आँखें#नशा# nasha#samander

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