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Showing posts from November, 2013

Log jaan jaate लोग जान जाते

लोग जान जाते क्या है तुमसे मेरा नाता जो गम में भी मुस्कुराने का हुनर न आता ।। शुक्र करो कि तेरे कूंचे से गुज़रा ही नहीं वरना जनाजे में भी वो तेरे ही गीत गाता ।। ए काश की समंदर न होते तो तूफां न आता मगर फिर ये है की दरिया किसमें समाता ।। एक झूठा वादा ही कर जाते आने का तो इंतज़ार का दिया क़यामत तक जलाता ।। तेरी परछाई को बांध लेते गिरह से यूँ की नायाब हमें छोड़कर अगरचे तू चला भी जाता

Draupadi ke cheer si द्रौपदी के चीर सी

द्रौपदी के चीर सी अंतहीन ये पानी की लड़ियाँ जुडती जा रही इनसे कड़ियाँ दर कड़ियाँ छोर भी नहीं इनका अश्क बहाते आँख थकी पलकें भी हारी निचोड़ते खंगालते थके कान भी अब सिसकियों के शोर से आँख उजालों की अब आदि नहीं न आए कह देना भोर से दुखती है रघ-रघ हँसता है सार जग हार चले है पग नहीं भरते अब डग डाल गया दरारें धेर्य की हांडी में अब बूंद बूंद रिस रहा ” दर्द का पानी “ मनोज नायाब 15/11/92 10:50 pm

Phasal ishka ki...फसल इश्क की

हमने खतों की खुरपियों से दिल की बंजर भूमि को खंगालकर इश्क के कुछ बीज बोये ख्वाहिशों के हल बांधे अरमानों के बैल जोते वफ़ा की खाद डाली बस फिर क्या था कसमों की कोंपले निकल आई इश्क के बीज अंकुरित हो गए वादों की पतियाँ हरी हुई रस्मों की अनचाही खर पतवार होसलों की कतरनी से काटी प्रेम के फूल खिले ही थे मिलन के फल अधपके हुए ही थे इश्क की फसल जवानी के घुटनों तक उग आई ही थी तुम्हारी वफ़ा के सूखे ने वादा खिलाफी की टिड्डियों ने मेरे इश्क की फसल को तबाह कर डाला ।                      "मनोज नायाब"

ग़ज़ल dil jub se diya hai

दिल जब से दिया है तब से दीया सा है ज़ालिम ने हर पल जलाया है ।। तमाम उम्र जिसे हंसाने की कोशिश की आज उसीने देखो रुलाया है ।। चवन्नी भर छोड़ के गया था ज़ख्म आज देखा तो सवाया है ।। ठीक है मुस्कुरा रहा है पर वैसा नही है जो नायाब के चेहरे पे नुमाया है ।। " मनोज नायाब "