लौटा दे
जहां बचपन बीता है मेरा वो ठाव मुझे लौटा दो । जहां बाल सखा रहते थे मेरे वो गाँव मुझे लौटा दो । बारिश के पानी में चलती थी जो चाहे सब कुछ ले लो मेरा तुम पर वो कागज़ की मेरी नाव मुझे लौटा दो । जून दोपहरी बिन चप्पल के बेफिक्र घुमा करते थे । नीम की छांव तले बैठकर खूब बातें किया करते थे बिना whatsapp के ही दोस्त इकट्ठा हो जाते थे डाल डाल पर चढ़कर बेर निम्बोली खाते थे फिर से जीना चाहता हूं वो बचपन मेरी धूप मुझे लौटा दे मेरी छाव मुझे लौटा दे नाप लिया करते थे धूप में सारी बस्ती पतंग लूटने दौड़ लगाते कैसी अजब थी मस्ती बिन ब्रांडेड जूतों के भी दिन भर क्रिकेट खेलते थे एक हवाई चप्पल से राह के सब कंकर झेलते थे वो कभी न थकने वाले वो कभी न रुकने वाले वो सामर्थ्य मुझे लौटा दो वो पाँव मुझे लौटा दो ।