Fasad kai dafa ho फसाद कई दफा हो गए

उनके ज़ुल्मों को तुमने
जलवों की तरह पेश किया
अब हमने चढ़ा ली बाजुएँ
तो साहब इस कदर खफा हो गए 
अपने दिलोदिमाग पे ज़रा ज़ोर डालो
फसाद शहर में कई दफा हो गए ।
उनकी खिदमत में कसीदे जो गढ़े 
तो मायने इसके अहले वफ़ा हो गए ।
तुम यदि नहीं हो सियासतदार इस मुल्क के
तो नायाब फैसले क्युं ये एक तरफा हो गए ।

"मनोज नायाब"

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