पलकों के किनारों को palakon ke kinaron ko....
ग़ज़ल
पलकों की किनारों को ज़रा खुला रहने दो
उफनते समंदर को इन आँखों से बहने दो
उफनते समंदर को इन आँखों से बहने दो
क्यूँ बार बार पूछते हो उसको हादसे की बातें
दिल को अपनी आपबीती खुद ही कहने दो
दिल को अपनी आपबीती खुद ही कहने दो
बड़ी महँगी है तेरी रोज़ रोज़ की दरियादिली
जिसका दर्द है ए दिल बस उसी को सहने दो
जिसका दर्द है ए दिल बस उसी को सहने दो
टूट चूका अंदर तक उनके ज़ुल्मों सितम से
"नायाब" इसी गलत फहमी में उनको रहने दो ।
"नायाब" इसी गलत फहमी में उनको रहने दो ।
मनोज "नायाब"
#dard#samunder#dil#
Comments
Post a Comment
Pls read and share your views on
manojnaayaab@gmail.com