Zameen jiska bichauna. ज़मींन जिसका

ग़ज़ल
ज़मीन जिसका बिछौना और आसमान शामियाना है ।
मैं वो मज़दूर हूँ गरीब की दुआएं जिसका मेहनताना है ।

ताउम्र जीते रहे तुझे ढूंढने में ए संग दिल ज़िन्दगी
शुक्रिया मौत तेरा इक तूने ही हमें बखूबी पहचाना है ।

क्यूँ न इतराये अपनी अमीरी पर  नायाब तुम ही बताओ
जिसकी तिज़ोरी में बहन की राखी और माँ के हाथ का बना खाना है ।

ना हुस्न में वो तहज़ीब बची न इश्क में वो तमीज 
सलीके की मुहब्बत न मुहब्बत का सलीका जाने किस मोड़ पे ज़माना है ।

सीखले ए दिल फाकाकशी में जीने की सभी तरकीबें
जिस तरह लूटा रहे हो बाकी वक्त लगता है ग़ुरबत में बिताना है ।

महबूब आते हैं और कुछ वक्त बिता कर लौट जाते हैं 
मानो दिल दिल नहीं रहगुज़र पे बना कोई मेहमानखाना है ।

" मनोज नायाब "

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