जीने का सामान
दोनों हथेलियों से उखाड़ी हुई
बगीचे की घास
तालाब में फेंके हुए कंकर
वो सूखा हुआ गुलाब
वो आर्चिज गैलेरी से खरीदे हुए
ग्रीटिंग्स कार्ड और उन पर
बदल कर लिखा हुआ नाम
दोस्तों से उधार ले कर
तुमको दिए हुए उपहार
एक ही स्ट्रॉ से कोल्ड्रिंक पीना
वेटर के आते ही हड़बड़ा कर
दूर हो जाना
पार्क के सिक्योरिटी गार्ड का
व्हिसल बजा बजा कर
पार्क खाली करने की हिदायत देना
और फिर दोनों का अलग अलग
बाहर निकलना और चेहरे पर
ना छुप सकने वाली घबराहट
वो सिगरेट न पीने की कसम दिलाना
वक्त पर खाना खाने की हक़ से हिदायतें देना
बढ़े हुए नाखूनों को देखकर
स्कूल टीचर की तरह डांटना
तुम आजकल बदल गए हो
कहकर बनावटी गुस्सा दिखाना
अपनी चुन्नी से मेरे माथे का
पसीना पोछना
तुम कहाँ हो किस हाल में हो नहीं पता
तुम साथ नहीं हो तो बस यही यादें
आखिरी सांस के इंतज़ार में
बस अब मेरे जीने का सामान है ।
मनोज नायाब
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