रात रात भर जले

रात रात भरे जले वो देहरी पर
तब रोशन तुम्हारी दीवाली हुई ।

दियों से पूछो जल जल कर 
कैसे उनकी रूह काली हुई ।

धूप निकली तो भूल गए हुज़ूर
चरागों के साथ कैसी बेखयाली हुई ।

इश्क की फसल कटी तो जला दिए खत
इश्क़ न हुआ खेतों की पराली हुई ।

सांझ के सिंदूरी सूरज को निचोड़ा था
तब तुम्हारे होठों की ये लाली हुई ।

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