नारों से निकालो


भूख  कर्ज़ और अत्याचारों से निकालो
मैं किसान हूँ मुझे झूठे नारों से निकालो

घुप्प अंधेरा और चांद भी बादलों की ओट
ज़रा सी रोशनी इन सितारों से निकालो

डूबना था इन समंदर की गहराइयों में यार
कोई तो मुझे इन किनारों से निकालो

अभी से कौन कर रहा है ये पतझड़ की बातें
शाख पर बैठे उल्लुओं को बहारों से निकालो

निवाला न बन जाए कहीं साजिशों का नायाब
इनको को मकड़ियों के जालों से निकालो ।


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