अग्नि कुंड
अग्नि कुंड के सरकंडों से
एक एक आखर सेका है
उबड़ खाबड़ पथरीली सी राहें
आलिंगन को आतुर कंटीली बाहें
जो बिखर न जाए कर्म पथ पर
कलम के चिमटे से हर आखर को
उलट पलट कर देखा है ।
अग्नि कुंड के सरकंडों में
एक एक आखर सेका है ।।
देख के आंसू तुम मौन न रहना
हो ज़ुल्म कहीं तो चुप न रहना
जय घोष की आवाज़ें बड़ी भाएगी
चिकनी राहें तुमको ललचाएगी
पंख तुम्हारे कतरने को आतुर
जाल किसी ने फेंका है
अग्नि कुंड के सरकंडो में
एक एक आखर सका है ।
उजले कपड़े पहन के आएंगे
अंधरे तुमको भरमाएँगे
ज्ञान चक्षुओं से देखो तो पाओगे
धूर्त अंधरे और उजालों के मध्य
अब बड़ी ही पतली रेखा है
अग्नि कुंड के सरकण्डों में
एक एक आखर सेका है ।।
सत्य तुम्हारी बाती होंगी
कर्तव्य तुम्हारा होगा तेल
दीपक बन करो उजाला
है तुम्हे मिटाना तम का खेल
तेरे भीतर जलने की आतुरता
को हमने भी तो देखा है ।
अग्नि कुंड के सरकण्डों में
एक एक आखर सेका है ।।
मनोज नायाब
अग्नि कुंड के सरकण्डों में
ReplyDeleteएक एक आखर सेका है ।।
बेहतरीन लेखन हेतु साधुवाद। ।।।।