हवाओं की अदालत
हवाओं की अदालत में
आज चिरागों पे मुकदमा है ।
फैसला सुनने की खातिर
उजालों की भीड़ जमा है ।
परवानों के कत्ल का इल्जाम
और कटघरे में शमा है ।
ए चरागों घर जलाना ठीक नहीं
बाक़ी तो तेरे सौ अपराध क्षमा है ।
अदालत मुंसिफ गवाह क्या कहूँ
तेरा तो यहां पूरा महकमा है ।
अब क्या जुगनू गवाही देंगें
हारते दियों को रोशनाई देंगे
जिनसे थी रोशनी की उम्मीद
उन चरागों से घर जला है
रंजक मधुर रचना
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़ल
ReplyDeleteवाह! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteWaah.... "परवानों के कत्ल का इल्जाम
ReplyDeleteऔर कटघरे में शमा है "उम्दा