जोशी मठ

गांव को गांव रहने दो शहर मत बनाओ ना
अमृत सी नदियों को जहर मत बनाओ ना

ऐसे ही रहने दो मेरे कच्चे खपरैल के ये घर 
इन्हें तोड़ कर तुम यूं कहर मत बरपाओ ना

काटकर पर्वत का मस्तक उगाकर सूर्य नकली तुम
आस की भोर को मेरी अंधेरी दोपहर मत बनाओ ना

घने पेड़ों के नीचे सोकर गुजारी है कई रातें
काटकर जंगल मेरे तुम अपने घर मत बनाओ न

Comments

Popular posts from this blog

हां हिन्दू हूँ

13 का पहाड़ा

यहाँ थूकना मना है yahan thukna mana hai