हे ईश्वर
हे ईश्वर ।
काश के तुमने
दिए होते जल को नेत्र
तो देख पाता कि
उसके तीव्र वेग में
समा हुए खेत,
गहने गिरवी रख कर
बनाया गया
कच्चा मकान,
पसीने से सिंचित
खड़ी फसल
एक जर्जर सा स्कूल
बूढ़े बाबा की चाय की टपरी
कच्ची बस्तियां
शहीद की विधवा
की सिलाई की दुकान
बूढ़ी दादी का
सब्जी का ठेला
24 गांव के लिए
एक मात्र अस्पताल
मूक मवेशी
अब्दुल मोची
राम शरण नाई की
तख्तियां जोड़ जाड़ कर
बनाई हुई दुकान
काश जल को
दिए होते नेत्र
तो शायद रास्ता
बदल लेता वो
और लोग भूखों मरने
से बच जाते ।
मनोज नायाब
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 22 जून 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
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पुन: भेंट होगी...