(लेख ) क्या है खुशी
क्या है ये ख़ुशी और ग़म-:
ख़ुशी हो या ग़म भले ही भीतरी एहसास हो पर दोनों 5 इन्द्रियों से प्रभावित होती है और ये इन्द्रियां बाहरी वस्तुओं से , अतः इनका प्रभाव भी अलग अलग मात्रा में पड़ना लाजिमी है । हालांकि ख़ुशी और गम का को नापने का कोई पैमाना तो नहीं है पर इन सबके बावजूद उनके कद काठी और स्तर को नापा जाता रहा है अप्राप्य और अनुपलब्ध पैमानों से मसलन आपका बच्चा अपनी कक्षा में उत्तीर्ण होता है तो आपको ख़ुशी होती है और वही प्रथम श्रेणी के अंकों से उत्तीर्ण हो तो ख़ुशी और बढ़ जाती है और इससे भी आगे बढे और पुरे विद्यालय में सर्वश्रेष्ठ आये तो आपकी ख़ुशी का पैमाना किस स्तर तक होगा इसका अन्दाज़ा आप सहज ही लगा सकते है वहीँ एक ख़ुशी ऐसी भी हो सकती है न तो बाहरी दृश्यों से मिलती है न ही किन्हीं इन्द्रियों से प्राप्त होती है ये ख़ुशी या ग़म आपको एहसास या कल्पना के सागर में प्रवेश करने से भी मिलती है ये भीतरी चीज़ों से मिलती है मगर ये वास्तविक कम और काल्पनिक ज्यादा होती है मगर जो भी हो ख़ुशी का एहसास तो कराती ही है । इसलिए ये मेरी निजी राय है की हर गम और ख़ुशी की एहसास का अपना एक स्तर होता है ये जब ये स्तर बढ़ता है तो स्वतः ही व्यक्ति बाँटने को आतुर होता है ।
ऐसे भी बढ़ सकती है ख़ुशी -:
एक व्यक्ति किसी एक के लिए नकारात्मक है तो दुसरे के लिए सकारत्मक भी यह सोचना आप स्वयं को भी है की क्यों आपके लिए नकारात्मक है अतः खुश रहने का एक विचार यह भी हो सकता है क्यों न उससे दूरी बनाने के बजाय हम उसे समझने का प्रयास करें और उससे सामंजस्य बनाएं और अपने अंदर व्याप्त कामियों को सुधार करें ऐसा कर पाए तो वही नकारत्मक व्यक्ति सकारत्मक लगने लगेगा क्यूंकि ये बात सत्य है की आपके आसपास के सभी वो लोग जो प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से आपसे जुड़े हुए हैं या आपको किसी न किसी रूप में आपको या आपके जीवन को प्रभावित करते हैं तो उनसे किनारा समस्याओं से किनारा करने जैसा अथवा मुंह मोड़ने जैसा है । इसलिए एक पहलु ये भी है की जिनको दुसरे लोग नकारत्मक लगते है कहीं ऐसा तो नहीं की उसकी नज़र मे आप नकारत्मक है ऐसे में आपकी गेंद आप ही के पाले में पुनः आ जाती है । अतः इन बातों को गंभीरता से सोचें तो एक और समस्या से निजात पाया जा सकता है और हम खुश रह सकते हैं ।
समभाव -:
प्रसन्न रहने का एक तरीका यह भी है की सदैव समभाव में रहें यानी गम कम या ज्यादा जितना भी हो विचलित न हो और ख़ुशी कितनी भी हो उसके मद में चूर न हो हर हाल में सामान भाव रखें या यूँ कहें की दुःख को सहने की क्षमता रखें और सामान्य रहे साथ ही ख़ुशी को हज़म करना सीखें ऐसे में दुःख और सुख दोनों से आप अप्रभावित रहेंगे । यह मुश्किल तो है पर असंभव भी नहीं ।
” मनोज नायाब “
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