बर्तनों पर नाम

इसीलिए शायद पूवजों द्वारा 

बर्तन पर नाम खुदवाया जाता था ।

क्योंकि बर्तनों में मिठाई नहीं 

अपनापन भर कर बंटवाया जाता था ।


तब कटोरियों में 

होली पर दही बड़े 

दीवाली पर मीठे शक्करपारे

बेटे के ससुराल से आई हुई

तीज की मिठाइयां 

उघापन का प्रसाद

सर्दियों में दाल के बड़े 

बेटे के पास होने पर रसगुल्ले

मल मास में गुड़ के गुलगुले 

कुलदेवी का प्रसाद

नई बहू के हाथों बनी

पहली पहली रसोई ,

और तो और

मुंडन या श्राद्ध में बची हुई

जलेबी को भी बांटकर खाया जाता था ।

इसीलिए पूवजों द्वारा 

बर्तनों पर हमेशा नाम खुदवाया जाता था ।


अब तो रिश्ते भी 

डिस्पोजल जैसे हो चले हैं 

बस काम में लो

और फैंक दो ।


"जो इस्तेमाल करेंगें और फिर 

डस्टबिन में डाल आएंगें ।

डिस्पोजल वाले लोग अब कहाँ 

बर्तनों पर नाम खुदवाएंगें "।


अक्सर घरों में गलती से रह गया

पड़ोसी का नाम खुदा चम्मच मिल जाता था ।

इसीलिए भी  पूवजों द्वारा 

बर्तनों  पर  नाम हमेशा  खुदवाया  जाता था ।


क्या परंपरा थी बर्तनों को भी 

कभी खाली नहीं लौटाया जाता था ।

इसीलिए पूवजों द्वारा हमेशा 

बर्तनों पर नाम खुदवाया  जाता था ।


मनोज नायाब ✍️

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