दरवाजे कौन खोल देता है

वफादारी के कुएं में आखिर

ये गद्दारी का ज़हर कौन घोल देता है ।


हमने तो अपनी जुबा काट ली थी 

फिर ये सारे राज़ कौन बोल देता है ।


बाहर दुश्मन का लश्कर हो तो भीतर से

ये किले के दरवाजे कौन खोल देता है ।


अब कहाँ पैदा होते वो तेग बहादुर

जो वतन के लिए गर्दन तक तोल देता है ।

Comments

Popular posts from this blog

हां हिन्दू हूँ

13 का पहाड़ा

यहाँ थूकना मना है yahan thukna mana hai