एक रोज़ आफताब
एक रोज आफताब देखने आया था मेरा घर
की कैसे उजला रहता है अंधेरों में ये दर
अंधेरे हमेशा ही मुझसे हार जाते है
शायद ये मेरी माँ की दुआओं का था असर
पतंग बनना चाहता हूं पहले की तरह
आकाश छूना चाहता हूं पहले की तरह
उड़ान भरना चाहता हूं पहले की तरह
फिर से लगा दो मुझे बचपन के मेरे पर
पीहर में किया करती थी मैं नखरे तब हज़ार
सर पे उठा लेती थी जब आ जाता बुखार
बाबुल का अंगना तुझको फिर से याद आ गया
इसीलिए भीगी है पलक, है आंख तेरी तर
एक रोज आफताब देखने आया था मेरा घर
की कैसे उजला रहता है अंधेरों में ये दर
अंधेरे हमेशा ही मुझसे हार जाते है
शायद ये मेरी माँ की दुआओं का था असर
पतंग बनना चाहता हूं पहले की तरह
आकाश छूना चाहता हूं पहले की तरह
उड़ान भरना चाहता हूं पहले की तरह
फिर से लगा दो मुझे बचपन के मेरे पर
पीहर में किया करती थी मैं नखरे तब हज़ार
सर पे उठा लेती थी जब आ जाता बुखार
बाबुल का अंगना तुझको फिर से याद आ गया
इसीलिए भीगी है पलक, है आंख तेरी तर
वाह! बेहतरीन!
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