पिछली दीवार
कभी थे हम भी खूबसूरत
मगर मुझ पर अब नहीं टांगी जाती
खूबसूरत नदियों पहाड़ों की तस्वीरेँ
कितने अक्स का गवाह हूँ मगर अब
मुझे बैकग्राउंड बनाकर
कोई नहीं खिंचवाता है फ़ोटो
बीते वक्त का साक्षी हूँ मैं
मगर मुझ पर नहीं लगाई जाती
अब कोई दीवार घड़ी
जाने कितने ही
मुंडन विवाह श्राद्ध और हवन के लिए
मेरे मज़बूत कंधों पर रखकर
बांधे जाते थे बांस की बल्लियां से टैन्ट
अब जब भी कोई जलसा होता है
रंगीन कपड़े से ढक दिया जाता हूँ
क्योंकि अब मैं बदरंग हो चला हूँ
अब मुझ पर मरम्मत का खर्च
भारी लगता है सबको
पूरे घर में रंग रोगन होता है
हर साल दीवाली पर
मगर मुझे छोड़कर ।
सब इसी इंतज़ार में है कि
एक वक्त के बाद मैं खुद
गिर जाऊंगा
गिन रहा हूँ मैं अपना आखिरी वक्त
अब नहीं है मुझ पर ताज ओ तख्त
अब भी नहीं पहचाने तो बताता हूँ
मैं घर के पिछले हिस्से की दीवार सरीखा
इस इस घर का बुजुर्ग हूँ ।
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