छंद


कुछ लोग तो खंजर की सी दुकान होते हैं 
कभी तो वो ज़हर मिले पकवान होते हैं ।

कितना भी सजा लो ये तो अपने नहीं होते
कुछ दोस्त ज्यों किराए के मकान होते हैं ।



लिपटा हुआ मखमल में वो आरा ही रहेगा
अपनों के झुंड में भी वो न्यारा ही रहेगा ।

भर भर के शहद इनमें तुम चाहे लाख उडेलो
सागर का पानी खारा था खारा ही रहेगा ।

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