सत्य सनातन

मैं सत्य सनातन अमर धर्म हूँ
मानवता का मृदुल मर्म हूँ

मैं ही तिमिर मैं उजियारा
मैं ही सूक्ष्म मैं विस्तारा

मैं काल चक्र का तांडव हूँ
मैं दुर्योधन मैं पांडव हूँ

हमने खगोल विज्ञान दिया
हमने हि शून्य का ज्ञान दिया

तारो की भाषा सिखलाई
सूरज की दूरी बतलाई

सप्त दिवस की प्रथा चलाई
काल चक्र की गति बताई

हमने वेद पुराण दिए
मानवता को प्राण दिए

इस भौतिकता ने भोग दिया
तब हमने जग को योग दिया

नदियों पर्बत को नाम दिए
हमने कृष्ण और राम दिए

भगीरथी ने यहां जन्म लिया
धरती पे गंगा अवतरित किया

वास्तु कला यहां की अद्भुत है
यहां दुनियां की चारो रुत है

हमने दिए कुदरत के भेद
हमने दिया है आयुर्वेद

आर्यभट्ट सा गणितज्ञ दिया 
और पाणिनि सा मर्मज्ञ दिया 

था अज्ञानता का फंदा
हमने दिया तब नालंदा 

हमने बनाया तक्षशिला
तब ज्ञान विज्ञान का पुष्प खिला

चहुं ओर ही था जब तिमिर
हमने दिया था वराहमिहिर

यहां की मानस यहां की गीता
यहां जन्मी राधा और सीता

तुलसी कबीरा और रसखान 
दोहों छंदों का अमृतपान

यहां वेद पुराण और शास्त्र हुए
यहीं सिकंदर परास्त हुए

रम जाए जिसमें तन और मन
यहां काशी मथुरा वृंदावन

मस्तक पर शोभित है त्रिपुंड
यहीं मिलेंगें यज्ञों के कुंड

जग में और कहीं भी नहीं दिखा
यहीं यग्योपवित है यहीं शिखा

कहीं बर्फ कहीं रेगिस्तान
ऐसा अद्भुत है हिंदुस्तान

यहाँ देवालय यहां शिवालय
गर्व से ऊंचा यहां हिमालय

सबसे विशाल यहां का गौधन 
यहां तुलसी और पीपल के वन 

ये मिट्टी रिश्तों की उपजाऊ है
यहां काका काकी ताऊ है

यहां बुआ मौसी साली जीजा
भगिनी बहना और भतीजा

जग में कोई देश नहीं है दूजा
होती हो जहां नारी की पूजा

करो अति आवश्यक यह पहला काम
इस धरती को करो प्रणाम

इस धरती को शत बार नमन हो
नायाब यहीं पे पुनर्जनम हो

कण कण में यहां रहते राम
मुरली की धुन में बसते श्याम

घट घट पर गंगा के घाट
मस्तक कुम कुम सजे ललाट

मनोज नायाब -:

सत्य के खेत सिमटते जाएंगें 
असत्य के गमले बढ़ते जाएंगे 

जैसे जैसे जागोगे तुम 
धर्म पर हमले बढ़ते जाएंगे 







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