उन्वान
तुम न थी तो
ज़िंदगी के पन्ने
बिखरे बिखरे थे
कोई खुशी का लम्हा
टिकता ही नहीं था
वक्त के झोंकों से
कभी इधर कभी उधर
उड़ते रहते थे
कुछ पन्ने हाथ आते
तो कुछ खो जाते
अब तुम आई तो मानों
ज़िंदगी के बिखरे पन्ने
ज़िल्द बंद हो गए
अब ठहराव सा
महसूस होने लगा
अब एक भी लम्हा
छिटकेगा नहीं
ए जिल्दसाज
इन लम्हों को बांधे रखना
थामे रखना
आज इस दिल की किताब का
उन्वान तुम्हारा ही नाम होगा ।
मनोज नायाब
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