दोहे dohe
घड़ी बंद जो कोई करे
समय बंद नहीं होय
झूठ छिपाया ना छिपे
सत्य का अंत न होय
सूरज जो बादल छिपे
क्षणिक उजाला खोय
कह नायाब बादल हटे
देख अंधेरा रोय
जड़ ना बदले पेड़ की
बदले पत्ती फूल
जो जड़ को हानि करे
मिट जावे वो मूल
बिजली चमके जोर से
घर न ऊजला होय
छोटो सो दीपक जले
चहुं उजियारा होय
नारायण से नर बड़ो
हरि से बड़ो हरिनाम
सागर मुंह बाए खड़ो
केवट आयो काम ।
राम जी के केवट आयो काम
वाणी को वीणा बना
मुख से मीठा बोल
दूर करेगा अपनों से
तेरे कड़वे बोल
रे भैया तेरे कड़वे बोल
शब्द कि ताकत बड़ी हुए
मत न जोर से न बोल
बारिश में फसलां उगे
नहीं बाढ़ को मोल
परिधान पर सुई चुभे
बणे मनुज को लिबास
कड़ी बात से चरित बने
भले न आवे रास
अपने भाग को पुण्य तो
निज कर्म से ही होय ।
जै पंडित सुमिरन करे
तोहे पुण्य न होय ।
सहस्त्र घड़ी तु बावरे
पर निंदा में खोय ।
मुख में बाणी प्रेम की
कोई ना बैरी होय ।
श्रद्धा से ही राम मिले
भजन को मोल न कोय ।
लगते मेले धरम के
वहां पुण्य नहीं होय ।
अधर खोल तू हस बंदे
हंसी मिले बिन मोल ।
झरे बोल जो जिव्हा से
मीठी मिसरी घोल ।
मनोज नायाब के दोहे --
मनोज नायाब
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