इश्क़ का सबक

जिन किताबों में इश्क़ का सबक नहीं
जी करता है लगा दूँ उनमें आग अभी 

मैंने खुद लिखा है तेरा नाम कलम से
देख उंगलियों पर स्याही के दाग़ है अभी 

नफरत के जानवर उजाड़ने आ गए
लगाया था जो मुहब्बत का बाग़ अभी 

रुको अभी डूब कर पूरा मरा नहीं है वो
नायाब उठ रहे हैं पानी में झाग अभी 

नायाब-

Comments

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 9 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

    अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्

    ReplyDelete
    Replies
    1. मुझे इस लायक समझ इसके लिए आपका धन्यवाद ।

      Delete

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