कैलेंडर और कील

कैलेंडर बदलता है 
उसकी कील नहीं
ये न ठहरा है 
न ठहरेगा कभी 
वक्त दरिया है 
कोई पानी की झील नहीं 

वो खुद ही गिर जाएगा
अपनी ही नज़र में एक दिन
नायाब करना उनको 
अब और ज़लील नहीं।

ए सियासत दानों सुनों
आसमान में रखी रोटियां
हमारे किस काम की
हम बस चिड़िया है 
कोई चील नहीं

मनोज नायाब

Comments

Popular posts from this blog

हां हिन्दू हूँ

13 का पहाड़ा

यहाँ थूकना मना है yahan thukna mana hai