रुक बतलाता हूँ कौन हूँ बे

रुक बतलाता हूँ कौन हूँ बे
कभी सवाया कभी पौन हूँ बे
कभी उभरा कभी गौण हूँ बे
तुलसी कबीरा जॉन हूँ बे 

सुन प्रताप का भाला हूँ
लष्मी बाई की ज्वाला हूँ
गद्दारों का काल हूँ बे
भारत माता की ढाल हूँ बे
नक्सलियों का अंत हूँ बे
वज्र से तीखा दंत हूँ बे
तुकाराम सा संत हूँ बे 
सुन दिनकर की कविता हूँ
कुरुक्षेत्र की गीता हूँ बे ।
हर पुरुष में राम हूँ बे
हर नारी में सीता हूँ बे ।
यग्योपवित की डोरी हूँ
माँ यशोदा की लोरी हूँ बे 

शिशुपाल की सौवीं गाली
के इंतज़ार में मौन हूँ बे ।
रुक बतलाता हूँ कौन हूँ बे ।



कश्मीरी पंडित के निर्वासन की
हमने पीड़ा झेली थी ।
तब भी चुप रह गए थे जब 
तुमने खून की होली खेली थी ।
उस दिन हमने भी न गीत शांति के
गाए होते ।
ज्यादा नहीं सब मिलकर के एक एक लट्ठ
उठाए होते ।


 ये न समझो की हमको
पत्थर नहीं चलाने आते
बम नहीं बनाने आते
ये न समझो की हमको 
बसें नहीं जलानी आती
बंदूकें नहीं चलानी आती
संस्कारों ने रोक रखा है
बस इसीलिए मैं मौन हूँ बे
रुक बतलाता हूँ कौन बे ।


टोपी में है जितने छेद ।
दिल में भी है उतने भेद।
उजले कपड़े मैला मन

नाम कन्हैया रखता है  ।
काम कंस का करता है ।
जैसे तेरे लक्षण है 
बदनाम यदुवंश करता है ।
सुनलो लेनिन की औलादें
यहां भी बाजू है फ़ौलादें
उसका बाल न बांका होगा
जिसके नटवर नागर है ।
भाग कहाँ तक भागेगा लेनिन
केरल के आगे तो सागर है ।
कुछ मेरे बहके साथी जो 
तेरे पाले में आए है
बस उनके ही कारण मौन हूँ बे
रुक बतलाता हूँ कौन हूँ बे ।














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