Tum gaye to chand kuch aisa tha

तुम गए तो चांद कुछ कुछ यूं ही लगा मुझे
वादों के घड़े पर
तांबे की पुरानी तश्तरी सा
घिसा घिसा सा था ।
अधूरी नींद काटी हुई
खुली आंखों से छुआ ज्यों
लिस लिसा सा था ।
आधा चांद किसी ने इश्क के सिलबट्टे पर
कूटकर मानो सितारे बना लिए
और किसी की ज़ुल्फ़ों में टांक दिए
बचा आधा चांद दो पाटों में
पिसा पिसा सा था ।
रोज़ जो उभरा सा रहता है खुशी से
आसमा के माथे पर
चांद आज धंसा धंसा सा था ।
तुम गए तो चांद कुछ कुछ यूं ही लगा मुझे ।
सचमुच तुम गए तो चांद कुछ कुछ यूं ही लगा मुझे ।

मनोज " नायाब "






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