भोर होने तक #bhor hone tak#

तुम्हे पल पल प्रतिपल है गलना
कुछ जुगनुओं को भी साथ ले चलना
भोर होने तक ए दीप तुम जलना

तिमिर से आज संग्राम है
अट्टहास करती शाम है
भय है उजालों के उर में
कंपन रश्मियों के सुर में
न छोड़ देना इन्हें अकेला
किरणों की कलाई थाम के चलना
भोर होने तक ए दीप तुम जलना ।

हां वेदना में भी हर्ष है
संघर्ष बस कुछ वर्ष है
भोर ही अब गंतव्य है
इरादे आज एकलव्य है
चहुँ ओर षड्यंत्र है
विजय ही एक मंत्र है
चाहे घोर तपिश हो
तिमिर के आग की
नहीं तुम कण भर भी पिघलना
भोर होने तक ए दीप तुम जलना ।

आसमान से कुछ सूर्य मंगाए
उड़ेल दो सभी आकाश गंगाएं,
भीम बनकर ए दीप
चीर दो तिमिर की जंघाएँ
चंद्रमा की सी धार हो
पुरुषार्थ के तीखे वार हो
मगर ये ध्यान रहे
दे कोई लोभ तो हरगिज़ न मचलना
भोर होने तक ए दीप तुम जलना

हौसलों के तुम शस्त्र रखना
सोच के उजले वस्त्र रखना
अग्नि का तुम स्नान करके
लक्ष्य का तुम ध्यान करके
कंठ से विजयी उद्घोष करना
भोर होने तक ए दीप तुम जलाना ।


























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