मठाधीश #mathadhish#
तुम पुराने मठाधीशों से कुछ अलग हो
मगर ये न सोचना की अलग थलग हो
इन इमारतों की बुलंदियों की खातिर
तुमने भी घिसी होगी एड़ियां ।
तुमने भी घिसी होगी एड़ियां ।
मगर नेक, आज़ाद खयालों के पैरों में
क्यों मज़बूरियों की है ये बेड़िया ।
क्यों मज़बूरियों की है ये बेड़िया ।
अब तुम्हे ही सुलझानी है हर हाल में
उलझा कर छोड़ गए कुछ लोग जो लड़ियाँ ।
उलझा कर छोड़ गए कुछ लोग जो लड़ियाँ ।
हमने तुम सा नया सूरज आसमान में सजाया है ।
फिर एक भाईचारे का बिगुल भरोसे से बजाया है ।
फिर एक भाईचारे का बिगुल भरोसे से बजाया है ।
मनोज नायाब
Comments
Post a Comment
Pls read and share your views on
manojnaayaab@gmail.com