कुछ बेकार शब्द

आओ किताबों से
कुछ बेकार के शब्द हटाएं
जिन्होंने यूँ ही घेर रखी है
कागज़ की क़ीमती जगह
जो अब
किस्से कहानियों
में रह गए हैं
जो इस्तेमाल में
न आने की वजह से
उखड से गए हैं पन्नों से
कागज़ की पकड़ उन पर
ढीली होने लगी है
मानो कोई मृत शरीर
रसायन का लेप लगाए
रखा गया है ताबूत में
चलो अब इन फ़िज़ूल के शब्दों
की अंत्येष्टि कर दें ।
भैतिक मन के
भौतिक वन से
कुछ स्वार्थ की धुप से सूखी
आडंबर की लकड़ियाँ चुने
और उन मृत शब्दों
को चिता पर लिटा दें
और क्रूरता की अग्नि
की लपटों के हवाले कर दें ।
देखो अब किताबों से कितनी जगह
खाली हो गई है
अब हम प्रेम की जगह नफरत
सेवा की जगह तिरस्कार
त्याग की जगह अहंकार
सदाचार की जगह दुराचार
दान की जगह व्यापार
संस्कार की जगह विकार
दया की जगह क्रूरता
को बिठा दे जो पिछले पन्नों
पर अब तक व्याकुल थे छिप
कर बैठे थे उन्हें पहले पन्ने पर ले आते हैं
उन्हीं को रोज़ पढ़ा करेंगे
उन्ही से अब समाज की
तस्वीर मढ़ा करेंगे ।
"मनोज नायाब"






Comments

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 12 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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