ग़ज़ल
हाथो में हो छुरिया तो गले मिलने का क्या फायदा ।अंजानो की तरह चलते रहो यही है सफर का कायदा ।
ए आसमां ये चाँद उधार देना चंद रोज़ के लिए मुझे तोहफा ये देने का मैंने कर दिया किसी से वायदा ।
ये रिश्ता इन साँसों का मोहताज़ ही नहीं है दोस्त
जां से भले ही कर दो जिश्म को तुम अलायदा ।
मनोज नायाब
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