ye shahar "ये शहर"
पंछियों के खुले खुले पंख है
मंदिरों में बजते हुए ये शंख है ।
बारिशों में नहाया हुआ ये शहर है
छम छम करती नटखट लहर है ।
धरती के माथे पे काले टीके सी सड़कें है
कोई आहट भी नहीं फिर क्यों दिल धड़के है
पेड़ों का दुशाला ओढ़े हुए पत्थर के पहाड़
सूरज न निकलना तू रहना बादलों की आड़
मौसम भी कर रहा मीठी शरारत
जाती रही बदन की सारी हरारत
आसमान से बरस रहे यूँ मोती है
कोई पिया मिलन को ज्यों रोती है ।
Comments
Post a Comment
Pls read and share your views on
manojnaayaab@gmail.com