कुछ दिन और रुक जाती बिटिया
कुछ दिन तो और रुक जाती बिटिया
अभी तो जी भरा नहीं है ।
तू गई तो मानो सब खो गया
तुमसा तो सोना भी खरा नहीं है ।
तेरे कमरे की अलमारी हमसे पूछेगी बिटिया
वो कहाँ गई जो बड़े जतन से
अपने कपड़े सहेज कर यहाँ रखती थी
आजकल दिखाई नहीं पड़ती
तो क्या जवाब देंगे तुम ही बताती जाना
तुम्हारे कमरे का वो आईना
उदास होकर पूछेगा कहाँ है वो
जो घंटों घंटों मेरे सामने
सजती संवरती थी
तो क्या जवाब देंगे हम तुम ही बताती जाना गुड़िया
डाइनिंग टेबल से लगी तेरी वो चेयर
क्या अब हमेशा खाली रहेगी
वो कुछ पूछेगी तो क्या कहेंगे हम
तुम ही बताती जाना लाडो
अब आइस क्रीम खाकर बीमार पड़ोगी
तो कौन डाँटेगा तुम्ही बताती जाना
अब bday पर रात 12 बजे केक कौन
काटेगा तुम्ही बताती जाना बिटिया
अब किससे करूँ वो पिलो फाइटिंग
कौन दिखाएगा मम्मी को
मेरी गन्दी सी हैंडराइटिंग
दीदी अब टीवी का रिमोट किससे छिपाऊँगा
छुप कर तेरे हिस्से की चोकलेट कैसे खाऊंगा
बताओ तुम ही यूँ
झटके में सुना कर जाता है
क्या घर का आँगन कोई
यूँ अचानक चिड़िया की तरह छोड़कर घोंसला
उड़ जाता है कोई
इस घर की एक एक ईंट को एक एक चीज को
तुम्हारे साथ रहने की आदत है
किस किस को समझाएं हम
तुम्ही बताती जाना गुड़िया
तुम्हारे बचपन के छोटे छोटे कपड़े
टूटे हुए पुराने खिलौने
नर्सरी की वो नोट बुक
पुरानी आधी छिली हुई पेंसिल
मम्मी की वो पुरानी साड़ी
जिसको पहनकर
तू कभी मम्मी बनने की एक्टिंग करती
और शीशे के सामने खूब इतराया करती
अभी भी माँ ने ये सब
सहेज संभाल कर रखा है ।
घर की हर चीज यही ज़िद कर रही है
हम उसे जाने नहीं देंगे
दरवाजे पर खड़े होकर
रास्ता रोक लेंगे फिर कैसे जाएगी दीदी
पर मैंने उन्हें समझा दिया है
बीच बीच में दीदी मिलने आती रहेंगी
तब जाकर मानें हैं ।
अब तूं चिंता न कर आराम से जा
हंसी ख़ुशी जा
जहाँ भी रहना खुश रहना बिटिया
बस एक बात हमारी भी मान लेना
आंसुओं की धार से इन कांधों को भिगोने देना
विदा होते वक्त हम सबको लिपटकर रोने देना
कुछ दिन और रुक जाती बिटिया ......
" मनोज नायाब "
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